एक दिन जा पहुचे हम एक होटल मे,
सामने से बैरा आया आते ही उसने अदब से सिर झुकाया,
हमने भी मुस्कुरा कर मेन्यू कार्ड माँगाया,
और फिर अपनी पसंद का सांभर डोसा ऑर्डर कराया,
जैसे ही खाने बैठे अनायास ही ध्यान बगल की टेबल से जा टकराया,
वहाँ बैठे एक जनाब चटकारे लेकर खा रहे थे मटर पुलाब,
उन्हे चटकारे लेते देख मन थोड़ा कुम्लाया,
कि काहे हमने साम्बर डोसा माँगाया,
फिर कुछ सोचा हमने मन को अपने समझाया, और सांभर डोसा खाने मे दिल को अपने लगाया,
वैसे भी यह तो फ़ितरत है इंसान की,
सामने वाले की प्लेट का खाना मन को लुभाता है,
फिर चाहे स्वाद उसमे ज़रा भी नही आता है,
किसी ने सच ही कहा है दोस्तो,
दूसरे की प्लेट के व्यंजन चाहे दिल को बहुत लुभाता है,
लेकिन सच्चा सुख तो अपने थाली के भोजन मे ही आता है......... किरण आर्या.
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शुक्रिया