Friday, September 23, 2011

नफरत

नफरत से किसने क्या पाया है,
यह तो वृद्ध की जर्जर काया है !!
नफरत सोच को कर जाती है कुंद,
फिर जाने क्यों लोग लगाते है,
गले इसे आँखों को अपनी मूँद ?
कर जाती अपनों को भी बेगाना,
हर रिश्ता लगता फेर में इसके अनजाना !!
दे जाती घाव ऐसे जो बन नासूर,
जीवन भर का दे जाते है दर्द,
हम रह जाते सोचते बस यहीं,
कर बैठे हम ऐसा क्या क़सूर ?
बन बैठे आज अपने ही बेगाने,
जिंदगी ने लिख दिए दर्द के फसाने,
पैदा कर जाती खाई यह रिश्तो में ऐसी,
जो भर पाती आजीवन,
लगता जीवन कांटो की सेज सामान !!
फिर क्यों नहीं समझते है हम?
नफरत से किसने क्या पाया है,
यह तो वृद्ध की जर्जर काया है !!
ऐसे में कर बड़ा दिल को अपने,
सोचे ये इंसान गलतियो का पुतला है,
निकाल फेंके इसे दिल से अपने,
तभी रह पाएगी सकारात्मक सोच अपनी,
और जीवन होगा खुशिओ की बगिया सामान............किरण आर्य

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शुक्रिया