Saturday, August 11, 2012

सच्चा साथी



एक दिन राह मे मुझे सच मिला,
मैने सहमकर उसे देखा और कहा,
दूर रहो मुझसे !

सुना है बहुत कड़वे हो तुम,
जो तुम्हारा दामन थामता है,
सबसे बड़ा बेबकूफ़ कहलाता है !

किसी के गले से नही उतरते तुम,
बहुत सख़्त हो सहज नही पच्ते तुम,
दिलो को बड़ा दुखाते हो तुम,
नाराज़गी का सबब बन जाते हो तुम!

देखा है तुम्हे कोनो मे सिसकते हुए,
असहाए झूट के कदमो मे माथा पटकते हुए !!

झूट तुमसे कहीं अच्छा है,
इसकी बुनियाद पर महत्वकांच्छाओ  की,
 इमारत खड़ी करते है लोग,

सरकरे भी खड़ी है इसीकि बुनियाद पर,
 इसके कंधो पेर पैर रखकर सफल होते है लोग !!

आज हर तरफ़ इसका ही बोलबाला है
और सच का मूह काला है,

वैसे भी यह तो दुनिया की रीत है,
जो प्रसिध है यहाँ वो ही मन का मीत है,
बाकी सब तो भ्रम है दिल का, और एक बेसुरा गीत है!

वो मेरी बात सुन होले से मुस्काया और बोला,
माना मैं कड़वा हू, तीखा हू,
लेकिन एक बार हाथ तो पकरो मेरा,
सच्चा सुख पा जाओगी !

माना सामने आने मे थोड़ा समय लगाता हूँ,
लेकिन जब सामने आता हू,
तो सच्चा सुख दे जाता हू !

 झूट चाहे कितना अच्छा हो लेकिन उसके पाँव नही होते,
मैं तो अपने पैरो पर अंगद की भाँति अडिग हूँ
अब तुम देखो, तुम्हे शणिक  खुशी चाहिए या
जीवन भर का सुख, बारिश की बूंदे रिमझिम या चातक का दुख !!

मैने सोचा पल भर, और फिर था लिया उसका हाथ कसकर,
चेहरे  पर मेरे एक चमक थी सच्चा साथी चुनने की
साथ ही थी उमंग मन मे नये सपने बुनने की........!.

- किरण आर्या

1 comment:

  1. समाज में सत्य और झूट में से चुनने का अंतर्द्वन्द ...सटीक प्रहार करती रचना ...बेहद सुन्दर ब्लाग है आपका शुभ कामनाएं
    नीचे की और से पांचवी पंक्ति में क्षणिक शब्द टाइपिंग में त्रुटि से छूट गया है शायद.....सादर आभार

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शुक्रिया