Thursday, August 23, 2012

आज फिर




आज फिर एक बच्ची सरे बाज़ार शर्मशार हुई
फिर रुका रुदन कहीं फिर एक चीत्कार हुई
दुखद था रक्त रंजित हो वजूद खोना उसका
फिर आज इंसानियत अपने चोले से बाहर हुई........

लोग खड़े थे बने मूक दर्शक तमाशबीनो से
चीत्कार उसकी जैसे बाजीगर का तमाशा कोई
हर मौजूद' इंसान की मानसिकता तो देखिये
पीड़ित बच्ची को ही कटघरे में कर दिया खड़ा......

यहाँ अनुभवी उम्र में भी लोग गलतियाँ कर जाते है
पर उस बच्ची से समझदारी की उम्मीद जताते है
अभी जिस बच्ची की सोच परिपक्व हुई नही
समझ से बाहर मेरी क्यों उस पर ही अंगुली उठी.......

जमीर की नजरों मे तार तार हुई अस्मत उसकी
स्वयं को पाक साफ करने इज्जत उछाली उसकी
आहत हुआ मन जब नारी भी मर्म को न समझ सकी
जो आइना उसका कटघरे में खड़ा उसे करने चली
उसकी संवेदना से रह अछूती न वो खुद से जोड़ सकी.....

क्या अब संभल पाना होगा आसान उस बच्ची का
मन उसका भी रोता होगा देख ये चेहरा जमाने का
ऐसे लोगो के कारण विवश होती है कुछ बेटिया
आत्मघात कर अपने वजूद को मिटा देती है बेटियाँ......

क्यों पछताए या हो शर्मिंदा एक बेटी अपने होने पर
सोचा तो निष्कर्ष निकाला, बदलनी होगी मानसिकता
और अब करनी होगी शुरुवात इसकी अपने ही घर से.....

बेटी को भी बनाना होगा बेटे सा सबल और मजबूत
बेटो को भी सीखना होगा करना हर लड़की की इज्जत
तभी मिलेगा बेटी को उसका वजूद और खोया सम्मान
और बेटी होगी हरी दूब सी सबल और हरीतिमा लिए............किरण आर्य

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शुक्रिया