Thursday, September 20, 2012

सुकून


वो एक चेहरा झुरियों से भरा हुआ,
बेबस ठंड से सिकुड़ता हुआ वो पिंजर,
उस एक कंबल के मिलते ही,
खिल उठा, और चमक उठी वो बुझती आँखे,
पथराई सी उन आँखो मे लौट आई फिर से नमी,
कंपकपाते हुए होंठों से निकले कुछ अपुष्ट स्वर,
कांपते हाथ अनायास ही उठे नमन मुद्रा मे,
उस समय मन मे हुआ जिस अहसास का स्रजन,
वो थी आंतरिक खुशी, सुकून और अमन,
सुना था एकांतवास, जंगल या पहाड़ों पर बसता है सुकून ,
लेकिन जब उस बूढ़े झुरियों से भरे चेहरे पर,
आई वो जीवन की मुस्कान, और आँखो मे खुशी,
तो हुआ अहसास कि सुकून तो बसता है उन आँखो मे,
जब उठते है हाथ किसी गिरते को संभालने,
जब दे पाते हैं किसी को सहारा,
अपने हिस्से की अनगिनत खुशियों मे से कुछ पल
उन चेहरो की चमक और खुशी से हिलोरे लेता जो मन मे,
वही है आंतरिक खुशी और अहसास सुकून जीवन मे,
वो अनमोल अहसास जिसे पाने को इंसान भटकता जीवन मे............ किरण आर्या

(मेरी यह रचना मेरे सभी दोस्तो को समर्पित है, जिन्होने 'सभ्य हम' को पढ़कर ज़रूरतमंदों के लिए अपना योगदान दिया- आभार )

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