Tuesday, August 27, 2013

आधुनिकता की आंधी

विशाल ने कल एक चित्र के साथ हास्य रचना पोस्ट की .....उस चित्र को देखकर हंसी के साथ जेहन में आये ये भाव आप सभी मित्रो की नज़र ......आशा है आपको पसंद आयेंगे ......

आधुनिकता की बही अब कुछ ऐसी आंधी
गर्भ में ही बन गए शिशु फेसबुक के आदी

राजधानी एक्सप्रेस है भया मानव अंधी दौड़
भ्रूण से ही शुरू हुई अस्तित्व पाने की ये हौड

अंधी दौड़ जीवन की अफरातफरी है चहुँ ओर
संवेदनाये मर रही संस्कृति रही है दम तोड़

डिजिटल अब दुनिया भई नेट मोबाइल का जोर
फेसबुक ट्विटर मन ललचाये नाचे मन का मोर

शांति हॉस्पिटल है जा रही चिंतित जियरा पुरजोर
फेसबुक ना खोलने पाने की पीड़ा प्रसव से भी घोर

शिशु की चुप्पी से थी वो घबराई जैसे कोई ढोर
आज सुबह से ना हलचल थी ना था कोई शोर

अल्ट्रासाउंड टेबल पर लेटी गुमसुम मूह को मोड़
देखा जैसे ही शुशु को झटका लगा उसे अति जोर

लैपटॉप संग व्यस्त नवजात फेसबुक करत है चोर
देख नौनिहाल की ऐसी छवि माता भई भावविभोर

व्यस्त रहूंगी मैं ऍफ़ बी पर लैपटॉप पर होगा मेरा चकोर
बैठ दोनों करेंगे अपनी-२ सेटिंग छू लेंगे आसमान के छोर

नाम करेगा रौशन किशन कन्हाई मेरा ये चितचोर
आधुनिकता की दौड़ में अव्वल, होगा मेरा नन्द किशोर

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शुक्रिया