Thursday, November 14, 2013

मन की आहट

सुनो ए मन मेरे 
एक रिश्ता है दरमियाँ मेरे और तेरे
उम्र के पड़ाव रिश्तों की खराश से परे
अभी तक जाना है मैंने तेरे
खिलखिलाते ठहाकों को जो
ख़ुशगवार झोंके से छूकर गुजर जाते
मेरे चेहरें पर गिरे गेसुओं को
प्रेम से स्निग्ध भावों को
जो तेरे अपने होने का भान करा जाते
बड़ी शिद्दत से मुझे
और सहला जाते मेरी उदासी को
तुम कहते हो मत कहलवाओ मुझसे
वह जो मैं कहना नहीं चाहता
बहुत कुछ आहटों से समझा करो
जिस दिन आहटों को
समझना सीख जाओगी
उस दिन कहने सुनने को
कुछ ना रहेगा शेष दरमियाँ हमारे
मूक बैठकर दूर रहकर भी
कर पायेंगे हर पहर हम
बातें अनगिनत बातें
बातें जो मैं बुनूं तुम समझ पाओ
बातें जो जोड़ेंगी हमें कुछ इस तरह
लगने लगूंगा तुम्हारा ही हिस्सा मैं
इसीलिए ए मन सीख रही हूँ मैं
महसूस करना पहचानना
एहसासों की आहट
उसके पदचापों की दस्तक
सुगबुगाते से एहसास
झिझक की परिधि में
जकड़े मूक से भाव
लेते अंगड़ाई स्वप्निल सी आँखों में
झिलमिलाते दीपों की बाती में
झांकते मेरी बड़ी बड़ी आखों में
मानो पूछ रहे हो मुझसे वो
सुनो पहचाना हमें
समझ रही हो ना तुम आहट हमारी

*************

2 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना कि प्रस्तुति कि है आपने ....इस में डाला गया स्केच भी बहुत ही लाजबाब है ...,

    ReplyDelete
  2. सुगबुगाते से एहसास
    झिझक की परिधि में
    जकड़े मूक से भाव
    लेते अंगड़ाई स्वप्निल सी आँखों में
    झिलमिलाते दीपों की बाती में
    झांकते मेरी बड़ी बड़ी आखों में
    मानो पूछ रहे हो मुझसे वो
    सुनो पहचाना हमें
    समझ रही हो ना तुम आहट हमारी

    ******किरण आर्य *******BAHUT HI KHOOB SUNDER RACHNA .....!!

    ReplyDelete

शुक्रिया