Wednesday, August 6, 2014

जाने क्यों ?

जाने क्यों ?

साँझा होती है खुशियाँ
हर दिल पर असर करती है
बादलों की ओट से निकल
जैसे तारें चमकते
नील गगन पर
रोशन हो जाती है
अमावस की स्याह रात भी
जुगनुओं के टिमटिमाने से  
ऐसे ही खुशियों दिल में बसर करती है

खुशियाँ बिखर जाती है
मन के आंगन में
रात की रानी के
फूलों की महक सी
उस महक से हो आकर्षित
हर मन भंवरे सा खीचा चला आता है
समेट लेना चाहता है
अपने अंतस में खुशबु का कुछ अंश
जैसे भंवरा फूल को चाहता है

लेकिन जब बात गम की आती है
गम तन्हा सा
बिसरता नज़र आता है
ठोकरों की नज़र हुआ जाता है
बैठ किसी सुनसान कोठरी में कहीं
सिसकियों को सहलाता है
नम आँखों में बसर करता है
भीगे होंटों पर मुस्कुराता है

हर नज़र गम से कतराती है
बचा दामन अपना
नज़रें चुरा कर निकल जाती है
हाथ छूट जाते है
हाथों से कुछ यूँ
जैसे रेत बंद मुठ्ठी से सरक जाती है
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शुक्रिया