Monday, October 13, 2014

शब्द


शब्द 
पूर्ण समर्पण है मांगते 
अधूरे मन से 
कुछ नहीं होता हासिल 
शब्द 
समय के मोहताज़ नहीं होते 

शब्द
पूस की दुपहरी में 
सूरज की आंच पा मुस्कुराते है 
शब्द
वक़्त की तेज़ आंधी में 
कभी उड़कर कहीं खो जाते है 

शब्द
बारिश में भीग कर 
कभी सीले से नज़र आते है 
शब्द
जेठ की गर्म लू 
में झुलस धूमिल हुए जाते है

शब्द
मरू की भटकन में कभी 
मृगतृष्णा के मोह में नीर बहाते है 
शब्द
को अगर राह मिल जाए 
तो इन्द्रधनुष से ये बिखर जाते है 

शब्दों को 
मोहलत की अलगनी पर छोड़ देना 
स्वयं को 
परिस्थिति से बहलाना भर ही तो है 

शब्द 
होते बावरे 
अपनी मर्जी के मालिक 
थोड़ी सी ढील 
में फिसल जाते रेत की तरह 

शब्द
छोड़ते ही हाथ 
उड़ जाते आवारा बादल बन 
और ये बादल 
बरस जाते फिर कहीं और 
तुम्हारे आँगन में 
रह जाती केवल तपिश उनकी

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